उत्तर प्रदेश पुलिस में नियुक्ति के 40 महीने बाद उप-निरीक्षक निर्भय सिंह को उनकी सेवा से हटाने का कठोर कदम उठाया गया है। यह कार्रवाई तब हुई जब उनके खिलाफ एक प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताएं थीं। इन आरोपों में यह भी शामिल है कि परीक्षा के दौरान 'सॉल्वर' का उपयोग किया गया था।
यह कपटपूर्ण मामला खासकर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यूपी पुलिस भर्ती प्रक्रिया में परीक्षा की सत्यनिष्ठा पर गंभीर सवाल उठा रहा है। निर्भय सिंह को उनकी नियुक्ति के दौरान पद की गरिमा को ठेस पहुँचाने और भर्ती प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया है। इस आधार पर उनकी सेवाओं को समाप्त कर दिया गया और उनके कार्यकाल में अर्जित लाभ भी छीन लिए गए।
यह मामला तेजी से जांच के घेरे में आ गया है और इससे जुड़ी कानूनी प्रक्रियाएँ अभी जारी हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि अपराध की गहनता कितनी है और क्या अन्य कर्मियों की भी जांच हो रही है। लेकिन यह मामला यूपी पुलिस और राज्य प्रशासन के सामने एक उदहारण प्रस्तुत करता है कि परीक्षा और भर्ती प्रक्रियाओं में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सभी संबंधित पक्षों की निगाहें इस मामले पर टिकी हैं और यह देखना बाकी है कि जांच के नतीजे क्या होंगे। इस बीच, यह मामला अन्य पुलिस कर्मियों और अधिकारियों के लिए भी एक चेतावनी का कार्य कर सकता है कि भविष्य में किसी भी प्रकार की अनुचित गतिविधि से बचा जाए। अन्यायपूर्ण साधनों का सहारा लेने वालों के खिलाफ यह कार्रवाई एक मिसाल के रूप में हो सकती है।
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