जब हम धर्म को देखते हैं, तो यह एक व्यापक अवधारणा है जो आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक पहलुओं को जोड़ती है। यह सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में प्रतिबिंबित होने वाला एक ढांचा है। गुरु पूर्णिमा, गुरुओं को सम्मानित करने वाला हिन्दू‑जैन‑बौद्ध त्यौहार इस ढांचे में खास जगह रखता है—यह उन लोगों की सराहना करता है जिन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान दिया है। उसी क्रम में व्रत, धार्मिक अनुशासन का एक प्रमुख साधन इस त्यौहार का अभिन्न हिस्सा है; कई लोग इस दिन दिन भर उपवास रखकर गुरु को स्मरते हैं। यहाँ पर गुरु पूर्णिमा का महत्त्व केवल एक दिवसिक उत्सव नहीं, बल्कि गुरु‑शिष्य परम्परा के पुनर्मूल्यांकन का अवसर है। हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में यह परम्परा अलग‑अलग रूप में प्रकट होती है, पर उनके मूल उद्देश्य समान—आत्मा की शुद्धि और ज्ञान की खोज। इस तरह, धर्म विभिन्न अनुष्ठानों, वैदिक ग्रंथों और सामाजिक समारोहों को समेटे हुए है, और प्रत्येक अनुष्ठान का अपना विशेष अर्थ है।
गुरु पूर्णिमा एक हिन्दू पर्व है जिसे आध्यात्मिक और शैक्षणिक गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। 2024 में यह उत्सव 20 जुलाई को होगा। यह पर्व भारत, नेपाल और भूटान के जैन, हिन्दू और बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है। गुरु-शिष्य परंपरा इस पर्व का मुख्य केंद्र बिंदु है।