अमेरिकी शेयर बाजार में एक ही दिन में ऐसा दबाव दिखा जिसे विश्लेषकों ने महामारी के शुरुआती दौर के बाद सबसे खराब बताया। नई टैरिफ नीति की आधिकारिक पुष्टि के कुछ ही घंटों में डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 1,653 अंक टूट गया। S&P 500 और नैस्डैक कंपोजिट ने भी पांच साल में अपनी सबसे बड़ी प्रतिशत गिरावट दर्ज की। यह गिरावट सिर्फ संख्या नहीं है, ये संकेत है कि ग्लोबल सप्लाई चेन, कॉरपोरेट मुनाफे और निवेशक भरोसे पर एक साथ चोट पड़ी है।
1 अगस्त को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए। इसमें 67 देशों पर 10% से 41% तक के अद्यतन टैरिफ लागू करने का शेड्यूल तय हुआ, जो 7 अगस्त 2025 से प्रभावी होगा। जो देश सूची में नहीं हैं, उन पर 10% का बेसलाइन आयात शुल्क लागू होगा। ‘रिसिप्रोकल’ नीति का मतलब सरल है—जो दरें अमेरिका के निर्यात पर लगती हैं, वैसी ही या सख्त दरें वह अपने आयात पर लगाएगा। बाजार ने इसे लागत बढ़ाने वाला और अनिश्चितता बढ़ाने वाला कदम माना।
टेक और कंज्यूमर शेयरों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी। एप्पल 8.7% टूटा और नाइकी 9.2% गिरा। सेमीकंडक्टर शेयर तो घुटनों पर आ गए—एनविडिया 11.3% और एएमडी 10.5% नीचे बंद हुए। चिप इंडस्ट्री का बड़ा हिस्सा एशिया में फैला है—डिजाइन अमेरिका में, फैब्रिकेशन ताइवान/दक्षिण कोरिया में, पैकेजिंग-मटेरियल दक्षिण-पूर्व एशिया में। टैरिफ और काउंटर-टैरिफ इस वैल्यू चेन में हर स्टेप पर खर्च बढ़ा देते हैं, इसलिए निवेशकों ने सबसे पहले इन्हीं स्टॉक्स से जोखिम घटाया।
AJ Bell के निवेश निदेशक रस मौल्ड ने कहा कि मार्केट “फ्लैशिंग रेड” था क्योंकि 7 अगस्त की डेडलाइन टलने के कोई संकेत नहीं मिले। यूरोप और एशिया के बाजार पहले ही दबे हुए थे और अमेरिकी फ्यूचर्स उसी मूड का इशारा कर रहे थे। साफ संदेश—नीतिगत सख्ती पर बाजार अब ‘वेट एंड वॉच’ नहीं, ‘सेल फर्स्ट’ मोड में है।
कनाडा पर भी बड़ा असर पड़ेगा। जो सामान USMCA (पूर्व में NAFTA) के दायरे से बाहर है, उस पर टैरिफ 25% से बढ़ाकर 35% कर दिया गया है। व्हाइट हाउस ने उत्तरी सीमा पर अवैध ड्रग तस्करी का हवाला देकर इसे सख्ती का हिस्सा बताया। टैरिफ तकनीकी रूप से व्यापार का औजार हैं, लेकिन तर्क चाहे सुरक्षा का हो या व्यापार संतुलन का—खर्च अंततः उपभोक्ता और कंपनियों तक पहुँचता है।
यह गिरावट अचानक नहीं आई। अप्रैल में ‘लिबरेशन डे’ घोषणा के बाद शुरुआती हफ्तों में S&P 500 करीब 20% तक फिसला और 7 अप्रैल को निचला स्तर बना। उसके बाद कुछ सुधार आया, लेकिन टैरिफ की परतें बढ़ती रहीं। जुलाई 2025 तक संघीय राजस्व में टैरिफ की हिस्सेदारी 2% से बढ़कर 5% हो गई। अगस्त तक औसत लागू अमेरिकी टैरिफ दर 18.6% के आसपास आंकी जा रही है—इतनी ऊंची दरें कंपनियों की कॉस्टिंग टेबल ही बदल देती हैं।
J.P. Morgan के क्रॉस-एसेट स्ट्रैटेजी हेड फाबियो बासी मानते हैं कि ऐसे माहौल में इक्विटी थोड़ी-सी रेंज में फंस सकती है। उनकी टीम ने S&P 500 के लिए 5,200 का बेसलाइन टारगेट रखा है, जो मौजूदा स्तरों से नीचे है। संदेश साफ है—आक्रामक नीतियां, बार-बार बदलते नियम और अनिश्चित सप्लाई चेन के बीच, वैल्यूएशन का दायरा सिमटता है।
टैरिफ के मोर्चे पर अमेरिका-चीन जंग नए हाई पर है। अमेरिकी आयात पर चीन के लिए प्रभावी दरें 145% के आसपास पहुंच गई हैं, जबकि चीन ने अमेरिकी माल पर 125% तक शुल्क बढ़ाए हैं। ये संख्याएं सिर्फ राजनीतिक तकरार नहीं दिखातीं, ये बताती हैं कि दोतरफा व्यापार अब ‘बाजार’ की जगह ‘नीति’ से चल रहा है। और जब नीति प्राथमिकता बनती है, बाजार प्राइसिंग में जोखिम का प्रीमियम स्थायी हो जाता है।
खुदरा दिग्गज कंपनियों ने अप्रैल में ही चेताया था—चीन के साथ कारोबारी तनातनी कीमतें बढ़ाएगी और स्टोर्स में कमी दिखेगी। नई सख्ती के बाद इंडस्ट्री एक्सपर्ट 3-5% तक की कीमत बढ़ोतरी का अंदेशा जता रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो अभी थमती दिख रही महंगाई फिर सिर उठा सकती है। केंद्रीय बैंक के लिए यह मुश्किल कॉम्बो है—धीमी ग्रोथ, कमजोर सेंटिमेंट और कीमतों पर ऊपर का दबाव।
सरकार का तर्क है कि टैरिफ राजस्व से आयकर पर बोझ घटाया जा सकता है, खासकर निचले और मिडिल इनकम वर्ग के लिए। लेकिन आर्थिक आकलन कहते हैं कि संभावित टैरिफ आय उस लागत का एक-चौथाई भी कवर नहीं कर पाएगी, खासकर तब जब आयात वॉल्यूम खुद कम होने लगें। मतलब, राजस्व बढ़ाने का यह तरीका सीमा के पास पहुँचते ही उल्टा असर दे सकता है।
कौन-कौन से सेक्टर ज्यादा घिरे दिखे? टेक, कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी और सेमीकंडक्टर्स तो हैं ही। ऑटो और एयरोस्पेस जैसी इंडस्ट्री में पार्ट्स कई देशों से आते-जाते हैं—हर क्रॉसिंग पर 10-41% की लागत जोड़ दें, तो नेट मार्जिन पतला होना तय है। फार्मा के लिए कच्चा माल और पैकेजिंग का हिस्सा बड़ा है, रिटेल के लिए इम्पोर्टेड अपैरल और फुटवियर पर बिल सीधे ग्राहक तक जाता है।
यूरोप और एशिया के बाजारों ने पहले ही कमजोरी दिखाई, और वॉल स्ट्रीट ने उसका साथ दिया। फ्यूचर्स मार्केट ने खुलने से पहले ही ‘रिस्क-ऑफ’ मोड का इशारा कर दिया था। फंड मैनेजरों के लिए चुनौती दोहरी है—अर्निंग्स मॉडल में टैरिफ-पास-थ्रू का अनुमान लगाना और वैल्यूएशन पर डिस्काउंट तय करना।
यह भी समझना होगा कि ‘रिसिप्रोकल’ दरें कागज पर जितनी सीधी दिखती हैं, जमीन पर उतनी नहीं। कई देशों के साथ अमेरिका के अलग-अलग उत्पादों पर अलग दरें हैं, कुछ पर कोटा, कुछ पर विशेष छूट। 67 देशों की सूची में 10-41% का दायरा है, पर हर उत्पाद-लाइन की अपनी कहानी है—मसलन इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स, पैकेजिंग मैटेरियल, स्पेयर पार्ट्स और एग्री-इन्पुट्स पर असर अलग-अलग।
कनाडा वाली पहेली भी ऐसी ही है। USMCA के तहत आने वाली कैटेगरी सुरक्षित हैं, लेकिन इससे बाहर वाले सामानों पर 35% तक की मार सीधे बॉर्डर क्रॉसिंग पर लगती है। दोनों तरफ की कंपनियां अब ‘रूल ऑफ ओरिजिन’, वैल्यू-एडिशन और सप्लाई रूट्स को फिर से लिख रही हैं—ये काम महीनों ले सकता है।
कॉरपोरेट बोर्डरूम में अब तीन बातें सबसे ज्यादा चल रही हैं—कॉन्ट्रैक्ट्स को फिर से नेगोशिएट करना, सप्लाई चेन की जीओग्राफी बदलना और कीमतें कितनी बढ़ानी हैं, इसका टेस्ट करना। जो कंपनियां जल्दी वैकल्पिक सप्लायर जोड़ पाएंगी, वे मार्जिन बचा लेंगी। जो नहीं कर पाएंगी, उन्हें वॉल्यूम में गिरावट और मार्जिन पर डबल-हिट का सामना करना पड़ सकता है।
मार्केट के लिए निकट भविष्य का मतलब है—वोलैटिलिटी ऊंची रहेगी, हेडलाइंस ड्रिवन ट्रेडिंग बढ़ेगी और डिप पर खरीदने वाले भी सतर्क रहेंगे। बासी का ‘रेंज-बाउंड’ वाला आकलन इसी हकीकत की ओर इशारा करता है। जब तक व्यापक व्यापार समझौते और स्थिर नियम-कायदे नहीं बनते, वैल्यूएशन पर प्रेशर नैचुरल है।
नीति-निर्माताओं के लिए असली टेस्ट यहां है। अगर टैरिफ से घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को टिकाऊ बढ़त मिलती है, तो मध्यम अवधि में कुछ सेक्टर फायदा उठा सकते हैं—जैसे बेसिक मैन्युफैक्चरिंग, डिफेंस सप्लाई, इंडस्ट्रियल मटेरियल। पर यह ट्रांजिशन महंगा और धीमा है। कंपनियां एक रात में फैक्ट्री नहीं शिफ्ट कर पातीं, और ग्राहक एक रात में ज्यादा कीमतें स्वीकार नहीं कर पाते।
इस बीच, सबसे सीधा असर कमाई (अर्निंग्स) पर दिखेगा। जो कंपनियां कीमतें बढ़ाकर लागत पास-थ्रू कर पाएंगी, वे टिकेंगी। जो कीमत नहीं बढ़ा पाएंगी, उनके लिए हर क्वार्टर एक बैलेंसिंग एक्ट होगा। यही वजह है कि बहुतेरे ब्रोकरेज हाउस एarnings गाइडेंस और कैश-फ्लो कमेंट्री पर ज्यादा फोकस की सलाह दे रहे हैं।
ट्रेड-वार की यह नई परत निवेशकों को यही याद दिला रही है कि नीतिगत जोखिम को इग्नोर नहीं किया जा सकता। ट्रम्प टैरिफ्स की दिशा अब बाजार का सबसे बड़ा चल कारक है—डेडलाइन नजदीक है, अनिश्चितता ऊंची है और हर नई सूची बाजार के मूड को बदल सकती है।
अप्रैल की ‘नेशनल इमरजेंसी’ वाली घोषणा से शुरू हुई यह आक्रामक लाइन अब एक व्यापक शेड्यूल में बदल गई है। औसत लागू टैरिफ 18.6% तक चढ़ चुके हैं, राजस्व में हिस्सेदारी 5% तक आ गई है, और दोतरफा दरें (खासकर चीन के साथ) व्यापार को नीति-निर्भर बना चुकी हैं। यह सेटअप कंपनियों को ‘शॉर्ट-टर्म पेन, अननोन लॉन्ग-टर्म गेन’ वाले जोन में धकेलता है।
रिटेलर्स ने जो चेतावनी दी थी—दाम बढ़ेंगे और कमी दिखेगी—उसका असर अब रोजमर्रा के सामान तक फैले तो हैरानी नहीं होगी। 3-5% की संभावित कीमत बढ़ोतरी सिर्फ आंकड़ा नहीं; यह डिस्क्रिशनरी स्पेंडिंग पर ब्रेक लगा सकती है। और जब मांग ठंडी पड़ती है, तो बाजार के लिए अच्छी खबरें भी असर खो देती हैं।
आगे की राह? बड़े ट्रेड डील्स, स्पष्ट टाइमलाइन और सीमित अपवाद—बाजार को यही चाहिए। जब तक ये नहीं मिलता, रैली टिकी रहे यह मानना मुश्किल है। कमाई के सीजन में हर कॉन्फ्रेंस कॉल अब सप्लाई चेन, प्राइसिंग पावर और कैपेक्स पर सबसे ज्यादा सवाल देखेगी। और हां, डेडलाइन जैसे-जैसे करीब आएगी, वोलैटिलिटी और सुर्खियां दोनों बढ़ेंगी।
एक टिप्पणी लिखें