गुरु पूर्णिमा 2024: व्रत कथा और महत्त्व

गुरु पूर्णिमा: व्रत कथा और महत्त्‍व

गुरु पूर्णिमा, जो कि विशेष रूप से हिन्दू, जैन और बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाए जाने वाला पर्व है, आध्यात्मिक और शैक्षणिक गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। 2024 में यह महत्वपूर्ण त्योहार 20 जुलाई को मनाया जाएगा। इस दिन को विशेष रूप से गुरु-शिष्य परंपरा के महत्त्व और उसके पुनरावलोकन के रूप में देखा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि शिक्षात्मक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

गुरु पूर्णिमा का पौराणिक और धार्मिक महत्त्व

हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, यह पर्व प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है। इसे महाभारत काल के दौरान व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता था, क्योंकि इसी दिन वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। वेदव्यास, जिन्हें महर्षि वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है, वे महाभारत और अठारह पुराणों के रचयिता थे। उन्होंने चार वेदों का भी विभाजन किया था, इसलिए उन्हें वेदों के व्यास भी कहा जाता है। इसी कारण हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा के दिन वेदव्यास जी को विशेष रूप से याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

गुरु पूजा का महत्त्व और विधि

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजा करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए उन्हें सम्मान और उपहार स्वरूप वस्त्र, फल, फूल, मिठाई आदि अर्पित करते हैं। गुरु पूजा की प्रक्रिया में सबसे पहले गुरु के चरण धोए जाते हैं, फिर उन्हें नये वस्त्र पहनाए जाते हैं और इसके बाद विशेष रूप से तैयार किया गया भोजन अर्पित किया जाता है। यह प्रक्रिया शिष्य और गुरु के बीच की आध्यात्मिक संबंधों को और मजबूत बनाती है।

शैक्षणिक और अद्यात्मिक गुरुओं का सम्मान

गुरु पूर्णिमा का पर्व केवल धार्मिक गुरुओं के लिए ही नहीं, बल्कि शैक्षणिक गुरुओं के लिए भी विशेष महत्त्व रखता है। भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में इस दिन विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं, जहां विद्यार्थी अपने शिक्षकों को धन्यवाद देते हैं और उन्हें सम्मानित करते हैं। विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें विद्यार्थी अपने कला, कविता, भाषण आदि के माध्यम से अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।

गुरु-शिष्य परंपरा का पुनरावलोकन

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु-शिष्य परंपरा का पुनरावलोकन करना अत्यंत आवश्यक है। यह परंपरा भारतीय संस्कृति का अनमोल धरोहर है, जो शिष्य को न केवल ज्ञान प्रदान करती है बल्कि उन्हें नैतिकता और सद्चरित्र का पाठ भी पढ़ाती है। इस दिन शिष्य अपने गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनके चरणों में प्रणाम करते हैं। गुरु भी अपने शिष्य को भविष्य में सफलता और सद्भावना की कामना करते हुए आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

गुरु पूर्णिमा का सामाजिक महत्त्व

गुरु पूर्णिमा केवल धार्मिक और शैक्षणिक महत्त्व का ही नहीं बल्कि समाजिक दृष्टिकोन से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन सामाजिक सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है जिसमें लोग एक-जुट होते हैं और अपने गुरुओं के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। विभिन्न सामाजिक कार्य स्थापित किए जाते हैं जो समाज के उन्नति और भलाई के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

गुरु पूर्णिमा का समापन

गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें इस बात का स्मरण कराता है कि हमारे जीवन में गुरुओं का महत्त्व अत्यंत विशेष है। वे हमें सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और हमारी ज़िन्दगी को गुणवान और उद्देश्यपूर्ण बनाते हैं। यही कारण है कि इस पर्व को इतनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

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