गुरपतवंत सिंह पन्नू ने जब से 'सिख्स फॉर जस्टिस' (SFJ) की नींव रखी है, खालिस्तानी आंदोलन एक नए रूप में सरगर्म हो गया है। वह अमेरिका में रहकर सोशल मीडिया के माध्यम से भारत विरोधी प्रचार करते हैं। उनकी गतिविधियाँ न केवल भारत की अखंडता के लिए खतरा हैं, बल्कि पश्चिमी देशों की रेडार पर भी हैं। बावजूद इसके, पन्नू पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। उनकी सुरक्षा अमेरिकी अधिकारियों द्वारा सुनिश्चित की गई है, जो इस बात को इंगित करती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी नेटवर्क का जाल कितना गहरा है।
पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद सलमान युनूस के साथ मिलकर पन्नू ने SFJ की स्थापना की। यह संगठन एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में District of Columbia में पंजीकृत है। अपने कानूनी और व्यावसायिक उपक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए पन्नू और युनूस ने एक लॉ फर्म की भी स्थापना की। यह साझेदारी खालिस्तान आंदोलन की जड़े मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का K2 मॉडल 'कश्मीर-खालिस्तान' एजेंडे के तहत 1980 के दशक से ही सक्रिय है। इस मॉडल का उद्देश्य भारत को स्थाई रूप से अस्थिर करना है। इसलिये, 'कश्मीर खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट' (KKRF) को उक्त एजेंडे के लिए स्थापित किया गया था। इस फ्रंट की गतिविधियाँ पाकिस्तान की आईएसआई के इशारे पर खालिस्तान और कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा दे रही हैं।
गज़ाला हबीब, जो पाकिस्तान समर्थित 'फ्रेंड्स ऑफ कश्मीर' की निदेशक हैं, इस आंदोलन के प्रमुख सहयोगी हैं। अगस्त 2020 में, 'फ्रेंड्स ऑफ कश्मीर' ने एक वेबिनार आयोजित किया, जिसमें पाकिस्तान के सप्रभुताओं और अमेरिकी कांग्रेसी शामिल हुए। यह इवेंट भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे सहियोजनों का स्पष्ट उदाहरण था।
इतने सारे सबूतों के बावजूद, पश्चिमी देशों जैसे कि अमेरिका, कनाडा, और यूके ने पन्नू और उनके सहयोगियों के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया। खालिस्तानी उग्रवादी गतिविधियों में वृद्धि के बावजूद, पश्चिमी देश केवल मूक दर्शक बने हुए हैं। ऐसी परिस्थितियों में, खालिस्तानी उग्रवादियों द्वारा आयोजित रेफरेंडम जैसे अपवित्र प्रयासों को रोकना अत्यंत कठिन बन गया है।
खालिस्तान समर्थक तत्वों की बढ़ती गतिविधियों से निपटने के लिए पश्चिमी देशों को एक सशक्त नीति तैयार करनी चाहिए। न केवल दूतावासों को बल्कि अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को भी इस मामले पर गहन जांच करने और आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। उन सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अंतरराष्ट्रीय धरातल पर आतंकवादी नेटवर्क को दबाने के लिए ठोस रणनीतियाँ अपनाई जाएं।
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