पूर्व विदेश मंत्री और भारतीय राजनीति के प्रमुख हस्ताक्षर के. नटवर सिंह का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। नटवर सिंह का जन्म 16 मई 1931 को हुआ था और उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा भारतीय राजनीति और कूटनीति के लिए समर्पित कर दिया। उनके निधन की खबर से पूरा देश शोकमग्न है और उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों की कतार लगी हुई है।
नटवर सिंह ने 2004 से 2005 तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान विदेश मंत्री का महत्वपूर्ण पद संभाला। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में, उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दी, जिनमें स्टील और खदानों के लिए राज्य मंत्री का पद भी शामिल है। उनके व्यक्तित्व और कूटनीतिक कौशल को देखते हुए उन्हें अक्सर जटिल विदेश मामलों को संभालने के लिए चुना जाता था।
वे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी सहयोगी थे और बाद में सोनिया गांधी और राजीव गांधी के भी विश्वस्त साथी रहे। यही नहीं, उन्होंने अपनी विद्वता और राजनीतिक समझ के दम पर कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का पक्ष मजबूती से रखा।
हालांकि नटवर सिंह का राजनीतिक सफर हमेशा सुगम नहीं रहा। 2005 में उन पर वोल्कर रिपोर्ट के तहत आरोप लगे जिसके कारण उन्हें सरकार से इस्तीफा देना पड़ा। इस विवाद के बावजूद, उनके समर्थकों और अनुयायियों ने हमेशा उनकी निष्ठा और सेवाओं को सराहा।
नटवर सिंह सिर्फ एक राजनीतिक नेता ही नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली लेखक भी थे। उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें उनकी आत्मकथा भी शामिल है। उनकी रचनाओं में भारतीय समाज और राजनीति के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण देखने को मिलता है।
उनकी प्रमुख पुस्तकों में 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' और 'पोर्ट्रेट्स ऑफ इन्डियन पॉलिटिक्स' शामिल हैं। नटवर सिंह की लेखनी ने उन्हें साहित्यिक जगत में भी स्थापित किया और वे साहित्य प्रेमियों के बीच में भी लोकप्रिय हुए।
नटवर सिंह के पीछे उनकी पत्नी हिमिंदर कौर और उनके दो बेटे हैं। उनके परिवार के साथ-साथ देशभर के राजनीतिक नेता और उनके करीबी मित्र उन्हें याद करते हुए शोक प्रकट कर रहे हैं।
उनका निधन भारतीय राजनीति के एक युग के अंत का प्रतीक है। उन्होंने अपने जीवनकाल में जिस प्रकार से देश की सेवा की, वह हमेशा यादगार रहेगा। उनके निधन पर देशभर के राजनीतिक नेताओं ने शोक व्यक्त किया और उन्हें याद किया।
नटवर सिंह का जीवन समाज और राजनीति के उतार-चढ़ावों से भरा रहा। उनकी राजनीतिक यात्रा ने कई संघर्षों और विवादों का सामना किया, लेकिन उनका सामाजिक और राजनैतिक योगदान हमेशा महत्वपूर्ण बना रहा। उनके करीबी मित्र और सहकर्मी उन्हें एक उच्च स्तर के कूटनीतिज्ञ और संवेदनशील इंसान के रूप में याद करते हैं।
भारतीय राजनीति के इस धरोहर का चले जाना निश्चय ही एक बड़ा नुकसान है, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। नटवर सिंह का नाम भारतीय राजनीति और कूटनीति में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा और उनका योगदान अनुपम रहेगा।
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