जब हम पितृ पक्ष, हिंदू कैलेंडर में पूर्वजों को स्मरण करने और उनकी आत्मा को शान्ति देने का विशेष समय. Also known as पितृ काली, it परिवार में श्रद्धा और कर्तव्य को सुदृढ़ करता है, तो हम सबको इस अवधि की तयारी का जरिया चाहिए. इस दौरान कई अनुष्ठान होते हैं, जिनमें सबसे प्रमुख हैं श्राद्ध और तर्पण. इन पर ठीक‑ठाक जानकारी रखें, ताकि यह पवित्र अवधि सही तरीके से मनाई जा सके.
पहला अहम एकता श्राद्ध, पितृ पक्ष में किए जाने वाले प्रमुख रिवाज, जहाँ भोजन और दान से पूर्वजों को याद किया जाता है. यह अनिवार्य कर्तव्य माना जाता है क्योंकि यह पीढ़ियों के बीच बंधन को मजबूत बनाता है. दूसरा महत्वपूर्ण रीति तर्पण, पानी, दूध या घी में पवित्र मंत्र जपकर पूर्वजों को अर्पित करने की प्रक्रिया. तर्पण के लिये साफ़ जल, चंदन‑पानी, काजू‑पिस्ता जैसी सामग्री इस्तेमाल होती है, जिससे रीतिकालीन शुद्धता बनी रहती है.
तीसरा आधारभूत बिंदु हिंदू पंचांग, भारतीय खगोलीय कैलेंडर, जो पितृ पक्ष की तिथियों को निर्धारित करता है. पंचांग में शु्क्ल पक्ष के शुक्लदशमी से शुरू होकर शेष 13 दिनों तक की तिथि निकाली जाती है. इस समय, मध्य में स्थित ऋषिकेश कार्य, बृहस्पति को विशेष अर्पण और कण्यादान का उल्लेख भी मिलता है. पंचांग के अनुसार ही सही दिन चुनना अनिवार्य है, क्योंकि गलत तिथि पर किए गए अनुष्ठान का प्रभाव सीमित माना जाता है.
इन सभी रिवाजों के पीछे एक ही सिद्धांत है – आत्मा को शान्ति, परिवार को सौहार्द. जब परिवार के बड़े सदस्य इन अनुष्ठानों में सक्रिय भाग लेते हैं, तो बड़ों का सम्मान और परम्परा आगे की पीढ़ी तक पहुँचती है. मातृ पक्ष की तरह पितृ पक्ष भी सामाजिक सुदृढ़ीकरण का स्रोत है, जहाँ लोग एक साथ आते हैं, दान‑पात्र होते हैं, और रिवाजों का पालन करके अपने अतीत से जुड़ते हैं.
पितृ पक्ष में अक्सर विभिन्न सामाजिक‑धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं – यज्ञ, कथा, और सामुदायिक भोजन. इन कार्यक्रमों में स्थानीय मंदिर, धार्मिक संगठन और आम जनता मिलकर भाग लेते हैं. इससे न केवल धार्मिक भावना मजबूत होती है, बल्कि सामाजिक सहयोग भी बढ़ता है. इसलिए, इस अवधि में समाचार portals पर भी इस विषय से जुड़ी कहानियां, संस्कृति‑परिचर्चा और स्थानीय आयोजनों की रिपोर्ट्स अक्सर दिखती हैं.
अब आप समझ गए होंगे कि पितृ पक्ष सिर्फ एक कैलेंडर की तिथि नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन‑शैली है, जो श्रद्धा, कर्तव्य और परिवारिक बंधन को जोड़ती है. नीचे आप विभिन्न लेख, समाचार और गाइड पाएँगे जो पितृ पक्ष के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझाते हैं – चाहे वह अनुष्ठान की विस्तृत विधि हो, या इस माह के सामाजिक प्रभावों की चर्चा। तो चलिए, आपके सवालों के जवाब और उपयोगी सलाह लेकर आगे बढ़ते हैं.
21-22 सितंबर 2025 को सौर ग्रहण सरव पितृ अमावस्या से मेल कर रहा है, 122 साल में पहली बार। भारत में यह ग्रहण दिखाई नहीं देता, पर पितृ पक्ष का समापन इसी रात को होता है। इस दुर्लभ संयोग को धार्मिक ग्रंथों में अत्यधिक पुण्य माना गया है और कई अनुष्ठान व उपाय सुझाए गये हैं। रात्रि में तर्पण, ब्राह्मण सत्कार, मंत्रजाप और दान के विशेष दिशा‑निर्देश भी प्रस्तुत किए गये हैं। अगले दिन नवरात्रि शुरू होने से आध्यात्मिक शुद्धिकरण की नई लहर शुरू होती है।
पितृ पक्ष 2024, 15-दिनों की अवधि है जिसमें पूर्वजों का सम्मान किया जाता है। यह 18 सितंबर, 2024 से शुरू होकर 2 अक्तूबर, 2024 को सर्व पितृ अमावस्या के साथ समापन होता है। इस अवधि में तर्पण और पिंड दान जैसी महत्वपूर्ण रीतियाँ निभाई जाती हैं जिससे पूर्वजों की आत्माओं को शांति और परिवार को आशीर्वाद प्राप्त होता है।