बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता वरुण धवन इन दिनों एक नई जिंदगी जी रहे हैं। हाल ही में पिता बने वरुण अपनी बेटी के साथ नए रिश्ते को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। पितृत्व का यह नया अनुभव न केवल उनकी निजी जिंदगी में बदलाव ला रहा है बल्कि एक व्यक्ति के रूप में भी उन्हें नए आयाम सिखा रहा है। माता-पिता बनने के बाद, हर व्यक्ति को नए तरह की जिम्मेदारियाँ समझनी पड़ती हैं और इस संबंध में वरुण ने हाल ही में अपने विचार साझा किए। उनकी जिज्ञासा कि कैसे अपनी बेटी के साथ एक मजबूत और गहन संबंध बनाया जाए, इस पथ पर उनका मार्गदर्शन कर रही है।
वरुण धवन को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा जब वह अपनी बेटी के साथ सहजता से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे। ऐसे में, उनके लिए सबसे बड़ा सहारा बने महानायक अमिताभ बच्चन, जिन्होंने उन्हें एक अनमोल सलाह दी। अमिताभ बच्चन का कहना है कि यद्यपि बच्चों को दिशा देने और उनका मार्गदर्शन करना आवश्यक है, सबसे महत्वपूर्ण है उन्हें सुनना। बच्चें अपनी भावनाओं और बातों को बेहतर तरीके से व्यक्त तभी कर पाते हैं जब उन्हें महसूस होता है कि माता-पिता उनके विचारों को महत्व देते हैं।
वरुण के अनुसार, अमिताभ की यह सलाह पेरेंटिंग का मंत्र है। बच्चों को सुनने का अर्थ केवल उनके शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी भावनाओं, उनके हावभाव और उनकी सांकेतिक भाषा को समझने का प्रयास करना भी है। जब माता-पिता इस तरीके से अपने बच्चों के साथ बातचीत करते हैं, तो यह बच्चे के साथ उनके संबंध को सरल और मधुर बना देता है।
पिता बनना और अपने जीवन को उसके अनुसार समायोजित करना वरुण के लिए एक बड़ा बदलाव रहा है। कई बार जब वयस्क अपने कर्तव्यों और पेशेवर जीवन को संतुलित करने की कोशिश करते हैं, तब बच्चों को सुनना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है। ऐसे में छोटे-छोटे अनुभव और दुसरों की सलाह जीवन को सुचारू रूप से जीने में सहायक होती है।
अमिताभ बच्चन के अनुभव से सीख लेकर वरुण धवन ने एक नया राह चुना है। यह बदलाव उनके अपने जीवन के अनुभव और जिन्दगी के नए पहलुओं को देखने के नये दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है। इन दिनों वरुण धवन अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से अपने परिवार और दर्शकों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें उनका नया पितृत्व जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है।
यह बातचीत और सलाह उन सभी के लिए एक प्रेरणा बन सकती है जो चाहे किसी भी क्षेत्र में हों, पारिवारिक रिश्तों की गरिमा और उनकी खुशनुमा गहराई को समझने की कोशिश कर रहे हैं। पेरेंटिंग का यह दर्शन चाहे नया हो या पुराना, इसका आधार माता-पिता और बच्चों के बीच खुली बातचीत और संवाद है।
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