चैत्र नववर्षा अष्टमी 2025: 5 या 6 अप्रैल? कन्या पूजा का मुहरत व तिथि विवरण

अष्टमी का महत्व और प्रमुख अनुष्ठान

चैत्र नववर्षा अष्टमी चैत्र नववर्षा अष्टमी 2025 हिंदू कैलेंडर में नौ‑दिन के नवरात्रि उत्सव का आठवां दिन है। यह दिन माँ दुर्गा के आठवें रूप, महा‑गौरी को समर्पित है, जो शुद्धता, शांति और करुणा का प्रतीक है। इस दिन का मुख्य आकर्षण दो प्रमुख अनुष्ठान हैं: संधि पूजा और कन्या पूजा।

संस्कृति‑विज्ञान की दृष्टि से, संधि क़ाल वह अवधि है जब अष्टमी की 24 मिनट और नवमी की शुरुआती 24 मिनट आपस में मिलते हैं। मान्यताएँ बताती हैं कि इस क्षण में माँ दुर्गा ने अपनी क्रूर रूप चामुंडी को प्रकट कर चण्डा‑मुंडा दानवों को समाप्त किया। इसलिए संधि पूजा को सबसे शक्तिशाली माना जाता है और भक्त इसे विशेष मंत्र-हवन, नैवेद्य और दीपों से अंजाम देते हैं।

  • सुबह जल्दी स्नान कर शुद्ध कपड़े पहनें।
  • नौ बर्तन तैयार करें, प्रत्येक में दुर्वा के एक रूप को स्थापित करें।
  • फूल, फल, मिठाई और बिना लहसुन-डंठल के शाकाहारी भोजन रखें।
  • संधि क़ाल में 48 मिनट के भीतर आध्यात्मिक मंत्र जपें।

कन्या पूजा का भी अपना खास स्थान है। इस अनुष्ठान में 2‑10 वर्ष की लड़कियों को दुर्गा के नौ रूपों का जीवंत प्रतीक माना जाता है। उनकी पादुका धोएँ, नए वस्त्र दें, मिठाई‑निवेद्य अर्पित करें और छोटे‑छोटे उपहार देकर सम्मान व्यक्त करें। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में समृद्धि, सुख‑शांति और मातृ शक्ति की कृपा बरसती है।

तिथि का विवाद और स्थानीय उपाय

तिथि का विवाद और स्थानीय उपाय

अष्टमी की सही तिथि को लेकर दो मत सामने आए हैं। कई राष्ट्रीय पञ्चांग, जैसे कि पी.टी. ब्रह्मा, वैदिक ज्योतिष संस्थान और ISKCON कैलेंडर, 5 अप्रैल 2025 (शनिवार) को अष्टमी घोषित करते हैं। वहीं कुछ क्षेत्रीय कलेंडर—जैसे उत्तर भारत के कुछ राजस्थानी और मध्य प्रदेशी पञ्चांग—6 अप्रैल को ही अष्टमी मानते हैं। यह अंतर lunar month की गणना में प्रयोग किए गए विभिन्न चंद्र नियमों, गया‑गति एवं विराट‑पंचांग के अंतर से उत्पन्न होता है।

भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे अपने स्थानीय पुजारी या गांव के पण्डित से संपर्क कर पुष्टि करें। कई मंदिरों में आधे दिन तक दो तिथियों की पूजा चलती है—पहले दोपहर में अष्टमी का कार्यक्रम और फिर शाम को नवमी‑संधि के साथ समापन। इस तरह से स्थानीय विविधताएँ भी सम्मानित होती हैं और सभी को भाग लेने का अवसर मिलता है।

प्रयोगिक टिप्स:

  1. फास्ट‑डेज़ के लिए हल्का अन्न, जैसे उबला चावल, दाल, सादा लड्डू और फल, अपनाएँ।
  2. सूर्यास्त के बाद अष्टमी का उपवास तोड़ें, तभी सभी अनुष्ठान पूर्ण मानें।
  3. संधि क़ाल में दीप जलाकर, शलाक और नमक सहित मंत्र जपें; यह समय विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है।
  4. कन्या पूजा के दौरान बच्चियों को रंग‑बिरंगी बँदी और पारंपरिक पायजामा पहनाएँ; इससे उत्सव को रंगीन बनता है।
  5. स्थानीय पञ्चांग की तिथि की पुष्टि के बाद, सोशल मीडिया या ग्राम सभा में नोटिस दें ताकि सभी लोग एक साथ पूजन कर सकें।

चैत्र नववर्षा अष्टमी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह हिन्दू नववर्ष की शुरुआत का संकेत भी देता है। इस दावत‑भरी नौ‑दिन की यात्रा का अंतिम चरण राम नवमी (7 अप्रैल 2025) है, जहाँ भगवान राम के जन्म का जश्न मनाया जाता है। इसलिए अष्टमी का सही तिथि जानना, समय‑संगत पूजा करना और सामुदायिक भाव को बनाए रखना इस वर्ष के नववर्ष को और भी सार्थक बनाता है।

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