कलिगंज उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस की अलीफा अहमद ने 50,049 वोटों से बीजेपी को हराया

कलिगंज उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस की अलीफा अहमद ने 50,049 वोटों से बीजेपी को हराया

पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के कलिगंज विधानसभा उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस की अलीफा अहमद ने 50,049 वोटों के बड़े अंतर से बीजेपी के अशिष घोष को हराकर जीत हासिल की। यह नतीजा 23 जून, 2025 को आधिकारिक रूप से घोषित किया गया, जब चुनाव आयोग ने गिनती के आंकड़े जारी किए। यह उपचुनाव अलीफा के पिता, पूर्व विधायक नसीरुद्दीन अहमद (लाल) के फरवरी 2025 में निधन के बाद आयोजित किया गया था। 38 साल की अलीफा, जो एक प्रमुख आईटी कंपनी में काम करती हैं और बीटेक स्नातक हैं, ने 1,86,357 वोटों में से 1,02,759 वोट (55.15%) प्राप्त किए, जबकि अशिष घोष ने 52,710 वोट (28.29%) हासिल किए। कांग्रेस-बाम मोर्चा के उम्मीदवार कबील उद्दीन शेख ने 28,348 वोट (15.21%) लेकर तीसरा स्थान प्राप्त किया।

माँ-मिट्टी-मनुष्य की जीत

चीफ मिनिस्टर ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर जीत की घोषणा के बाद कहा, 'इस क्षेत्र के सभी धर्म, जाति, नस्ल और सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों ने हमें अपना आशीर्वाद दिया है... यह जीत के मुख्य निर्माता हैं माँ-मिट्टी-मनुष्य।' उन्होंने अपनी जीत को अपने पिता की याद में समर्पित किया और बंगाल की मिट्टी और लोगों को समर्पित किया। अलीफा ने गिनती केंद्र के बाहर भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, 'यह जीत लोगों के प्यार और ममता बनर्जी की विकास राजनीति पर भरोसे की वजह से है।' उन्होंने बीजेपी के विपक्षी नेता सुवेंदु अधिकारी के दावे का खंडन करते हुए कहा, 'मैं इससे सहमत नहीं हूँ। हमें कुछ हिंदू-बहुल क्षेत्रों से भी मजबूत समर्थन मिला। हमने किसी समुदाय के वोट को टारगेट नहीं किया। हमने सभी मतदाताओं को संबोधित किया। परिणाम दिखाते हैं कि बंगाल में लोग साम्प्रदायिक विभाजन का समर्थन नहीं करते।'

बीजेपी की रणनीति और वास्तविकता

बीजेपी ने इस चुनाव में हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने पर जोर दिया था, और इसके लिए केंद्र सरकार के 'ऑपरेशन सिंदूर' का जिक्र किया गया, जिसे उन्होंने तृणमूल की 'अनुग्रह राजनीति' के खिलाफ एक शक्तिशाली नारा बनाया। कलिगंज में 48% से अधिक मतदाता अल्पसंख्यक समुदाय के हैं, जिसके कारण बीजेपी का यह रणनीतिक दांव विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। सुवेंदु अधिकारी ने कहा, 'कांग्रेस-सीपीआईएम को अल्पसंख्यक क्षेत्रों में कुछ समर्थन मिला। हमारा लक्ष्य हिंदू मतदाताओं को एकजुट करना था, और मुझे लगता है हम इसमें सफल रहे।' लेकिन वास्तविकता अलग थी—अलीफा ने न केवल मुस्लिम मतदाताओं, बल्कि कई हिंदू गांवों से भी भारी समर्थन प्राप्त किया। यह बताता है कि बीजेपी की साम्प्रदायिक रणनीति यहाँ नाकाम रही।

इतिहास और चुनावी ट्रेंड

कलिगंज विधानसभा क्षेत्र पहले बाम मोर्चा का किला रहा है। नसीरुद्दीन अहमद ने 2011 में इस सीट जीती थी, 2016 में हार गए और 2021 में 1,11,696 वोट (53.35%) लेकर बीजेपी के अभिजीत घोष को 46,987 वोटों के अंतर से हराकर वापस आए थे। 2021 के चुनाव में आठ उम्मीदवार थे, जबकि 2025 के उपचुनाव में केवल तीन थे—अलीफा, अशिष और कबील। दिलचस्प बात यह है कि अलीफा के वोट 9,000 कम थे, लेकिन जीत का अंतर 46,987 से बढ़कर 50,049 हो गया। यह तब हुआ जब कांग्रेस-बाम मोर्चा के उम्मीदवार ने बीजेपी के वोट को तोड़ दिया। तृणमूल का वोट शेयर 2021 की तुलना में 1.8% बढ़ा, जबकि बीजेपी का 2.62% घटा।

क्यों यह जीत महत्वपूर्ण है?

यह जीत सिर्फ एक विधानसभा सीट की बात नहीं है। यह बंगाल में साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ एक शक्तिशाली संदेश है। जब बीजेपी ने हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने का दांव खेला, तो लोगों ने अलीफा को उनके धर्म से परे एक विकास नेता के रूप में चुना। यह दर्शाता है कि बंगाल के लोग अब अपने धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि नेतृत्व, विकास और समावेशन के आधार पर वोट दे रहे हैं। यह उपचुनाव राष्ट्रीय स्तर पर भी एक अहम संकेत है—जहाँ बीजेपी को अल्पसंख्यक क्षेत्रों में जीत नहीं मिल रही, वहाँ तृणमूल की अनुग्रह राजनीति की जगह वास्तविक समावेशन काम कर रहा है।

अगले कदम क्या हैं?

अलीफा अहमद अब अपने पिता के खाली पड़े सीट को भरने के साथ-साथ नए विकास कार्यों की शुरुआत करेंगी। उन्होंने घोषणा की है कि वे शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करेंगी। बीजेपी अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करेगी—क्या यह जीत एक अपवाद है या एक नए ट्रेंड की शुरुआत? अगले साल के विधानसभा चुनाव में यही सवाल महत्वपूर्ण होगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अलीफा अहमद की जीत कैसे हुई, जबकि उनके पिता के वोट कम थे?

अलीफा के पिता ने 2021 में 1,11,696 वोट प्राप्त किए थे, जबकि उन्होंने 1,02,759 वोट लिए। लेकिन उनकी जीत का अंतर बढ़ा क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस-बाम मोर्चा के बीच वोट बँट गए। इससे बीजेपी के वोट शेयर में कमी आई, जिसके कारण अलीफा की जीत का अंतर 46,987 से बढ़कर 50,049 हो गया।

बीजेपी की 'ऑपरेशन सिंदूर' रणनीति असफल क्यों रही?

'ऑपरेशन सिंदूर' का लक्ष्य हिंदू मतदाताओं को एकजुट करना था, लेकिन अलीफा ने कई हिंदू बहुल गांवों से भी भारी समर्थन प्राप्त किया। लोगों ने साम्प्रदायिक भाषण के बजाय विकास के वादों को चुना। इसलिए बीजेपी की रणनीति यहाँ असफल रही।

कलिगंज क्षेत्र में अल्पसंख्यकों का क्या योगदान था?

कलिगंज में 48% से अधिक मतदाता अल्पसंख्यक हैं। अलीफा ने इनमें से अधिकांश वोट प्राप्त किए, लेकिन उन्होंने हिंदू मतदाताओं से भी शक्तिशाली समर्थन प्राप्त किया। यह दर्शाता है कि उनकी जीत साम्प्रदायिक आधार पर नहीं, बल्कि सामाजिक समावेशन और विकास के आधार पर थी।

इस जीत से अगले विधानसभा चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यह जीत तृणमूल के लिए एक बड़ी प्रेरणा है। यह दर्शाता है कि साम्प्रदायिक राजनीति के बजाय समावेशी विकास की राजनीति बंगाल में काम करती है। बीजेपी को अपनी रणनीति में बदलाव करने की आवश्यकता है, नहीं तो अगले चुनाव में भी यही ट्रेंड जारी रहेगा।