जब डोनाल्ड ट्रम्प, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने चीन पर कठोर टैरिफ लागू कर दिए, तो सोने के सूत्रों ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोना $3,007.79 प्रति औंस तक पहुँच गया, जो पिछले 24 घंटों में $40.58 की उछाल रही। यही नहीं, कुछ विश्लेषकों ने कहा कि यह कीमत अमेरिकी शटडाउन की संभावना के साथ मिलकर निवेशकों को सुरक्षित आश्रय की ओर धकेल रही है।
ट्रम्प की रेसिप्रोकल टैरिफ नीति ने चीन की निर्यात दर पर 34% का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया, जबकि अमेरिका को 50% तक के टैरिफ की नई धमकी का सामना करना पड़ा। चीन ने इस कदम को आर्थिक जवाबी कार्रवाई के रूप में अपनाया, जिससे दो महाशक्तियों के बीच व्यापारिक तनाव फिर से तना में आ गया। इस बिंदु पर, कई निवेशक जोखिम‑बहिष्कार के लिए सोने को पसंद करने लगे।
जैसे‑जैसे टैरिफ में बढ़ोतरी हुई, Federal Reserve की पॉलिसी रेट्स में कटौती की उम्मीदें भी जीवित हुईं। फेडरल रिज़र्व की इस संभावित नीति बदलाव ने डॉलर को कमजोर किया, जबकि सोना एक औपचारिक निवेश साधन बन गया। वर्ष 2025 में सोने की कीमतों में अब तक 45% से अधिक की वृद्धि देखी गई है – 1979 के ईरानी संकट के बाद से सबसे बड़ा सालाना उछाल।
भारत में भी माहौल समान रहा। मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रीशियस मेटल रिसर्च के विश्लेषक मानव मोदी के अनुसार, अमेरिकी बजट गतिरोध और प्रमुख संघीय कार्यक्रमों की देरी ने जोखिम‑भरे निवेशों को हतोत्साहित किया। परिणामस्वरूप, भारतीय ब्रोकर IBJA.Com ने बताया कि सोना 1,17,332 रुपये प्रति 10 ग्राम से उछलकर 1,19,059 रुपये तक खुला। चांदी भी 1,45,610 रुपये से बढ़कर 1,48,550 रुपये पर पहुँच गई।
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि सोने की मौजूदा रैली तीन बड़े कारणों से चल रही है: अमेरिकी शटडाउन की अटकलें, फेडरल रिज़र्व की संभावित दर‑कटौती, और वैश्विक भू‑राजनीतिक तनाव। एक मैक्रो‑इकोनॉमिक विश्लेषक ने कहा, "जब तक टैरिफ नीति में निरंतरता नहीं आती, निवेशकों का भरोसा केवल सोने में ही रहेगा।" इसके अलावा, कई केंद्रीय बैंकों ने इस साल की पहली तिमाही में गोल्ड रिज़र्व को 5% तक बढ़ा दिया है, जो निरंतर मांग को दर्शाता है।
डॉलर के निरंतर कमजोर होने और अमेरिकी राजनीति में अस्थिरता के कारण, सोना अब सिर्फ एक धातु नहीं, बल्कि "वित्तीय बीमा" बन चुका है। भारतीय निवेशकों ने भी इस प्रवृत्ति को अपनाया, विशेषकर छोटे‑मोटे मध्यम वर्ग ने 10-ग्राम का सोना खरीदना शुरू कर दिया। जैसा कि मानव मोदी ने कहा, "बजट में अनिश्चितता और टैरिफ की अप्रत्याशितता के बीच, सोना एकमात्र ऐसा साधन है जो मुद्रास्फीति से बचाव प्रदान करता है।" इस प्रकार, अगले कुछ महीनों में सोने की कीमतों में और अधिक उछाल देखना संभव है।
मुख्यतः निवेशकों को सुरक्षित आश्रय चाहिए, इसलिए वे सोने के भौतिक और डिजिटल दोनों रूपों में निवेश बढ़ा रहे हैं। भारत में खुदरा खरीदार, विशेषकर मध्यम वर्ग, भी इस मार्जिन से लाभ उठा रहे हैं।
यदि टैरिफ तनाव बढ़ता रहा, तो वैश्विक धन प्रवाह सोने की ओर ही रहेगा। इससे दीर्घकाल में सोने का मूल्य स्थिर या बढ़ सकता है, जबकि डॉलर की विश्वसनीयता कम होगी।
विशेषज्ञों की राय है कि अभी भी सोना खरीदना समझदारी है, क्योंकि भारतीय बाजार में अस्थिरता कम नहीं हुई है और मौद्रिक नीति में अनिश्चितता बनी हुई है। छोटे‑मोटे निवेशकों को 10‑ग्राम की गोलियों से शुरू करने की सलाह दी जाती है।
ब्याज दर घटाने से डॉलर के ऊपर दबाव बढ़ता है, जिससे निवेशक कम रिटर्न वाले डॉलर की जगह उच्च स्थिरता वाले सोने की ओर झुकेगा। इसलिए दर‑कटौती सोने को और ऊँचा उठा सकती है।
टैरिफ नीतियों की दिशा, अमेरिकी बजट का स्थायित्व, फ़ेडरल रिज़र्व की मौद्रिक नीति, और वैश्विक भू‑राजनीतिक तनाव—ये मुख्य कारक सोने की कीमतों को आकार देंगे। साथ ही, भारत‑चीन में बढ़ती सोने की मांग भी अहम भूमिका निभाएगी।
एक टिप्पणी लिखें