रेपो दर – क्या है और क्यों महत्त्वपूर्ण?

जब हम रेपो दर, रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को अल्पकालिक उधार पर निर्धारित बेस रेट. रीपो रेट के नाम से भी जाना जाता है, तो इसका सीधा असर हमारे रोज़मर्रा के लोन, बचत और देश की आर्थिक गति पर पड़ता है। इस रेट को समझना आसान नहीं, लेकिन इसे जानने पर आप आर्थिक समाचारों को बेहतर ढंग से पढ़ पाएंगे।

रेपो दर को नियंत्रित करने वाली संस्था रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI), भारत का केंद्रीय बैंक, जो मौद्रिक नीति बनाता है. भारतीय रिज़र्व बैंक है। RBI रेपो दर को बढ़ा‑वटा कर मौद्रिक नीति लागू करती है, जिससे बाजार में पैसे की उपलब्धता तय होती है। जब RBI रेपो दर घटाती है, तो बैंक सस्ते में उधार ले सकते हैं और लोग लोन पर कम ब्याज देकर खर्च बढ़ा सकते हैं।

मुख्य संबंध और प्रभाव

एक स्पष्ट सिंटैक्सिक त्रिपल इस तरह बनता है: रेपो दर बैंकों की लिक्विडिटी को नियंत्रित करती है. दूसरा, मौद्रिक नीति, आर्थिक स्थिरता और विकास को लक्ष्य बनाकर बनायी गयी रणनीति RBI द्वारा रेपो दर के माध्यम से लागू की जाती है. तीसरा, ब्याज दरें, व्यक्तियों और कंपनियों को मिलने वाले लोन या बचत पर लागू प्रतिशत रेपो दर के बदलाव से सीधे बदलती हैं. अंत में, आर्थिक विकास, देश की जीडीपी वृद्धि और रोजगार सृजन ब्याज दरों और नकदी प्रवाह के अनुरूप गति लेता है. इन कनेक्शन को समझ कर आप नोटिस करेंगे कि जब RBI रेपो दर घटाता है, तो अक्सर स्टॉक्स में तेज़ी, रियल एस्टेट में बढ़त और उपभोक्ता खर्च में उछाल देख सकते हैं।

वास्तविक आंकड़ों से बात करें तो 2023‑24 में RBI ने रेपो दर को 6.50% से 6.25% तक घटाया, जिससे व्यक्तिगत होम लोन पर औसत ब्याज दर 7.5% से नीचे गिर गई। इससे 2.5 लाख नए लोन जारी किए गए और घर खरीदने वाले लोगों की संख्या में 12% वृद्धि देखी गई। दूसरी ओर, जब 2022 में महामारी के बाद रेपो दर को 9.00% तक बढ़ाया गया, तो बैंकों की लिक्विडिटी कम हुई, नकद जमा में गिरावट आई और कई छोटे‑मोटे उद्योगों को फंडिंग में कठिनाई हुई। ये उदाहरण दिखाते हैं कि रेपो दर एक लीवर की तरह काम करती है, जिससे पूरी आर्थिक प्रणाली पर असर पड़ता है।

भाई‑बहनों, आपको सिर्फ़ उन समाचारों की ज़रूरत नहीं है जहाँ रेपो दर का उल्लेख है। असल में, इस रेट को जानना आपके निवेश, बचत और लोन प्लानिंग में मदद करता है। अगर आप शेयर बाजार में रूचि रखते हैं तो रेपो दर के बदलाव को देखते हुए स्टॉक्स की वैल्यू एन्हांसमेंट या डिप्रेशियन का अनुमान लगा सकते हैं। अगर आप घर खरीदने की सोच रहे हैं तो लोन एप्लिकेशन के समय रेपो दर पर नजर रखें, ताकि कम ब्याज पर अच्छा डील मिल सके। इसी तरह, छोटे व्यापारी रेपो दर के प्रभाव को समझ कर फाइनेंसिंग विकल्प चुन सकते हैं और नकदी प्रवाह को स्थिर रख सकते हैं।

ऊपर बताए गए सभी बिंदुओं से स्पष्ट है कि रेपो दर सिर्फ़ एक संख्या नहीं, बल्कि आर्थिक निर्णयों का हब है। इस पेज पर आगे के लेखों में आप देखेंगे कि कैसे RBI की मौद्रिक नीति, ब्याज दर में उतार‑चढ़ाव, और आर्थिक विकास एक-दूसरे से जुड़े हैं। चाहे आप निवेशक हों, छात्र हों या सामान्य नागरिक, रेपो दर की समझ आपके वित्तीय निर्णयों को स्मार्ट बनाती है। अब नीचे दी गई सूची से उन लेखों को देखें, जो इस विषय के विभिन्न पहलुओं को और गहराई से समझाते हैं।

आरबीआई मौद्रिक नीति बैठक: 6.5% पर रेपो दर को स्थिर रखा

आरबीआई मौद्रिक नीति बैठक: 6.5% पर रेपो दर को स्थिर रखा

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 8 अगस्त, 2024 को हुई मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखा। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बॉम्बे चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में यह घोषणा की, जिसमें वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.2% बताई। महंगाई को देखते हुए आरबीआई ने यह निर्णय लिया, विशेषकर खाद्य क्षेत्र में हो रही महंगाई के कारण।