बॉलीवुड में हर साल कई एक्शन फिल्में आती हैं, पर Yudhra फिल्म कुछ अलग करने की कोशिश करती है। डायरेक्टर पुष्कर ओझा ने इस बार कास्ट को बड़ा रखा—सिद्धांत चतुर्वेदी खुद Yudhra राठौर के किरदार में, जिसकी जिंदगी बचपन के जख्मों से भरी है। माता-पिता की मौत ने उसके अंदर का गुस्सा फोड़ दिया है, जो उसे जेल तक ले आता है। जेल में ही उसे पता चलता है कि उसके पिता की मौत कोई साजिश थी, एक्सीडेंट नहीं। बस यहीं से शुरू होता है बदले का सिलसिला, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की धमक भी शामिल हो जाती है।
मलविका मोहनन फिल्म में युध्रा की बचपन की दोस्त निकहत बनी हैं। दोनों की केमिस्ट्री में शुरुआत में थोड़ी चमक है, लेकिन स्क्रिप्ट जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे रोमांस कमजोर होता जाता है। दोनों किरदार पढ़े-लिखे और समझदार दिखते तो हैं, मगर उनका प्यार फिल्म में कहीं परिपक्व नहीं लगता। इमोशन गायब हैं—डायलॉग होते हैं, पर असली कनेक्शन मिसिंग है।
अगर आप एक्शन के शौकीन हैं तो फिल्म टाइम-पास हो सकती है। कुछ सीन खासतौर पर एडवांस कैमरा वर्क और स्टंट्स की वजह से काफी इम्प्रेस करते हैं। कॉम्बैट सीक्वेंस में यूनिक एडिटिंग है, जो मॉडर्न टच देती है। सिद्धांत चतुर्वेदी ने युध्रा के गुस्से भरे अचानक मूड मूवमेंट को बढ़िया पकड़ा है, और उनके एक्शन सीक्वेंस में बेहतरीन एग्रेशन दिखता है।
दूसरी तरफ, स्क्रिप्ट ढीली है। इंटरवल के बाद कहानी पचाने में भारी लगती है। सीन बार-बार खुद को दोहराते हैं, और किरदार कहीं गुम हो जाते हैं। सपोर्टिंग कास्ट—राम कपूर एक डाउटफुल पुलिसवाले के रोल में और गजराज राव यूनीक सपोर्टिंग भूमिका में दिखते हैं, लेकिन उन्हें भी ज्यादा स्पेस नहीं मिला।
खलनायक के रोल में राघव जुयाल ने शफीक नाम के क्रूर कैरेक्टर को ज़बरदस्त ट्विस्ट के साथ पेश किया है। उसकी हरकतों में एक अनप्रीडिक्टेबल टेंशन है, जो फिल्म को नई जान देती है। राज अर्जुन एक सटीक ड्रग माफिया के तौर पर सामने आते हैं।
फिल्म का सबसे बड़ा मसला यही है—किरदार बहुत हैं, लेकिन उनके साथ दर्शकों का इमोशनल कनेक्शन कम है। वर्ल्ड बिल्डिंग करने का प्रयास है, पर सेकंड हाफ तक सब कुछ काफी प्रेडिक्टबल हो जाता है। फीका क्लाइमैक्स और चरित्रों की अधूरी जर्नी फिल्म की संभावनाओं को कमजोर बना देते हैं।
स्टाइलिश सिनेमैटोग्राफी, बढ़िया बैकग्राउंड म्यूजिक और बेहतरीन परफॉर्मेंस के बावजूद Yudhra की कहानी में वो पकड़ नहीं जो इसे यादगार बना सके। फिल्म ने एक्शन के तड़के से राहत देने की कोशिश जरूर की है, पर कहानी पर से भरोसा उठ जाता है।
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