21 नवंबर 2025 से भारत में श्रम कानूनों में ऐतिहासिक बदलाव लागू हो रहे हैं। चार नए श्रम कोड ने 29 पुराने कानूनों को एकीकृत कर दिया है, और इसका सबसे बड़ा फायदा फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को मिल रहा है — अब वे श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार, केवल एक साल की निरंतर सेवा के बाद ही ग्रेचुइटी के अधिकारी बन जाएंगे, जबकि पहले इसके लिए पांच साल की जरूरत थी। यह बदलाव न केवल कर्मचारियों के लिए सुरक्षा बढ़ाता है, बल्कि उनकी अस्थायी नौकरियों को भी वैधता देता है।
क्यों यह बदलाव इतना बड़ा है?
पिछले कानूनों के तहत, फिक्स्ड-टर्म कर्मचारी अक्सर अस्थायी नौकरी के नाम पर अल्पकालिक वेतन और बिना किसी सुरक्षा के रखे जाते थे। ग्रेचुइटी के लिए पांच साल की अवधि बहुत लंबी थी — जिसके कारण कंपनियां अक्सर कर्मचारियों को चार साल बाद ही बर्खास्त कर देती थीं। अब यह गेम चेंज हो गया है। एक साल के बाद ग्रेचुइटी मिलने से कंपनियों को अब लंबे समय तक कर्मचारियों को रखने का दबाव नहीं बनेगा, लेकिन वे उन्हें पूरी तरह से समान लाभ देने के लिए बाध्य होंगे।
क्या बदल गया? पूरा विवरण
नए श्रम कोड के तहत, फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को अब नियमित कर्मचारियों जैसे सभी लाभ मिलेंगे — छुट्टियां, चिकित्सा बीमा, पेंशन, और सामाजिक सुरक्षा। यह तब तक नहीं था जब तक कंपनियां अपने कर्मचारियों को अस्थायी बनाकर लाभों से वंचित नहीं कर देती थीं। इसके अलावा, अब बेसिक सैलरी को CTC का कम से कम 50% होना अनिवार्य हो गया है। इसका मतलब है कि अगर कोई कर्मचारी 10 लाख रुपये CTC पर काम कर रहा है, तो उसकी बेसिक सैलरी कम से कम 5 लाख होगी। इससे प्रोविडेंट फंड और ग्रेचुइटी की राशि बढ़ेगी, लेकिन टैक्स बचत कम हो सकती है।
इसके साथ ही, भारत में पहली बार एक सार्वभौम न्यूनतम वेतन (floor wage) तय किया गया है। राज्य सरकारें इससे कम वेतन नहीं दे सकतीं। यह निर्णय लगभग 70% कर्मचारियों को लाभान्वित करेगा, जो पहले न्यूनतम वेतन कानून के दायरे से बाहर थे — खासकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग।
कंट्रैक्ट लेबर और गिग वर्कर्स के लिए बड़े बदलाव
अब कंट्रैक्ट लेबर के लिए लागू होने वाली न्यूनतम संख्या 20 से बढ़कर 50 हो गई है। यानी, अगर कोई फैक्ट्री या कंपनी 50 से कम कंट्रैक्टर्स को रखती है, तो उसे अब इन कानूनों का पालन करना अनिवार्य नहीं है। इसका मतलब है कि छोटे उद्यमों को लचीलापन मिला है, लेकिन बड़े उद्यमों के लिए जिम्मेदारी बढ़ गई है।
गिग वर्कर्स — जैसे ज़ोमैटो, डिलीवरू, और ओला के ड्राइवर्स — अब इन कोड्स के दायरे में आ गए हैं। एग्रीगेटर्स (प्लेटफॉर्म कंपनियां) को अब अपनी सालाना आय का 1-2% (अधिकतम 5%) गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा फंड में जमा करना होगा। इससे लाखों डिलीवरी बॉय और ड्राइवर्स को अब पेंशन, बीमा और बचत के अधिकार मिलेंगे।
कम्यूटिंग एक्सीडेंट्स अब काम का हिस्सा
एक छोटा सा, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण बदलाव: अब घर से काम और काम से घर जाते समय होने वाले दुर्घटनाओं को भी काम के समय के अंतर्गत माना जाएगा। यह बदलाव लाखों शहरी कर्मचारियों के लिए एक बड़ी सुरक्षा वृद्धि है। पहले ऐसी दुर्घटनाओं में श्रमिकों को कोई मुआवजा नहीं मिलता था।
रिस्किलिंग फंड: बर्खास्तगी के बाद भी सहारा
अगर कोई कंपनी किसी कर्मचारी को बर्खास्त करती है, तो उसे उसके 15 दिनों के वेतन के बराबर राशि रिस्किलिंग फंड में जमा करनी होगी — यह अतिरिक्त राशि है, जो रिट्रेंचमेंट कंपेंसेशन के साथ अलग है। यह राशि बर्खास्तगी के 45 दिनों के भीतर कर्मचारी के खाते में जमा होनी चाहिए। इससे कर्मचारियों को नए कौशल सीखने के लिए समय और धन मिलेगा।
महिलाओं के लिए रात के समय काम की अनुमति
महिलाओं को अब रात के समय काम करने की अनुमति है — लेकिन शर्त यह है कि उन्हें लिखित सहमति देनी होगी। इसके साथ ही, रात के शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं को दोगुना वेतन मिलेगा। यह बदलाव उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ाएगा, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी अब कंपनियों पर आ गई है।
एडहार-लिंक्ड यूनिवर्सल अकाउंट नंबर: एक बार रजिस्टर, सारे भारत में लाभ
अब हर श्रमिक को एक यूनिवर्सल अकाउंट नंबर मिलेगा, जो उसके एडहार से जुड़ा होगा। इससे कोई भी कर्मचारी, चाहे वह बिहार से हो या कर्नाटक में काम कर रहा हो, अपने सामाजिक सुरक्षा लाभों को आसानी से एक्सेस कर सकेगा। यह बदलाव आंतरिक आप्रवासन के कारण लाखों कर्मचारियों को लाभ पहुंचाएगा।
क्या यह सब सच में काम करेगा?
यह सब बहुत अच्छा लगता है — लेकिन असली चुनौती लागू करने में है। असंगठित क्षेत्र में अक्सर कानून बस कागज पर ही रह जाते हैं। अगर श्रम निरीक्षकों की संख्या नहीं बढ़ी, तो ये कानून बहुत से कर्मचारियों तक नहीं पहुंच पाएंगे। लेकिन एक बात तय है: अब कर्मचारी के लिए एक नया मानक बन गया है — अस्थायी नौकरी भी अब अस्थायी लाभ नहीं हो सकती।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को ग्रेचुइटी किस तरह मिलेगी?
1 वर्ष की निरंतर सेवा के बाद, फिक्स्ड-टर्म कर्मचारी को ग्रेचुइटी मिलेगी, जो अंतिम वेतन के 15 दिनों के बराबर होगी। यह राशि नियमित कर्मचारियों के लिए लागू होने वाली गणना विधि से मेल खाती है — अर्थात, 15 दिनों का वेतन प्रति वर्ष सेवा। इसका भुगतान नौकरी छोड़ने या अवधि पूरी होने पर होगा।
बेसिक सैलरी 50% क्यों बनाई गई?
यह बदलाव वेतन की गणना को स्पष्ट करने के लिए किया गया है। पहले कंपनियां बेसिक सैलरी कम रखकर प्रोविडेंट फंड और ग्रेचुइटी कम देती थीं। अब बेसिक 50% होना अनिवार्य है, जिससे बचत और सुरक्षा लाभ बढ़ेंगे — भले ही टैक्स बचत कम हो जाए। यह लंबे समय में कर्मचारी की आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी है।
गिग वर्कर्स को क्या लाभ मिलेंगे?
गिग वर्कर्स को अब पेंशन, बीमा, और बचत के लिए फंड मिलेगा। एग्रीगेटर्स को उनके भुगतान के 1-2% (अधिकतम 5%) योगदान देना होगा। यह धन एडहार-लिंक्ड खाते में जमा होगा, जिसे कर्मचारी अपनी जरूरत के अनुसार उपयोग कर सकता है। यह भारत में डिजिटल वर्कफोर्स के लिए पहली बार ऐसा कोई नियम है।
रात के समय काम करने के लिए महिलाओं को क्या शर्तें हैं?
महिलाओं को रात के समय काम करने के लिए लिखित सहमति देनी होगी, और उन्हें दोगुना वेतन मिलेगा। कंपनियों को यातायात, आवास और सुरक्षा की व्यवस्था करनी होगी। यह नियम न केवल आय बढ़ाएगा, बल्कि महिलाओं के लिए नौकरी के अवसरों को भी विस्तार देगा — लेकिन इसके लिए सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी है।
क्या ये कानून असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों तक पहुंचेंगे?
हां, लेकिन इसके लिए श्रम निरीक्षण की व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए। असंगठित क्षेत्र में 90% कर्मचारी अभी भी अनौपचारिक रूप से काम करते हैं। अगर निरीक्षक नहीं हैं, तो ये कानून कागज पर ही रह जाएंगे। सरकार को इसके लिए ग्रामीण और शहरी श्रम निरीक्षकों की संख्या बढ़ानी होगी।
क्या इन कोड्स का असर बेरोजगारी पर पड़ेगा?
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि लाभों के बढ़ने से छोटी कंपनियां नौकरियां कम दे सकती हैं। लेकिन अधिकांश विश्लेषकों का कहना है कि अब कर्मचारी अधिक स्थिर और उत्पादक होंगे — जिससे कंपनियों की लागत कम होगी। अस्थायी नौकरियों के बजाय स्थायी नौकरियों की बढ़ोतरी से बेरोजगारी लंबे समय में कम होगी।